वँश दान कर देने वाले हमारे दशम गुरू को बदनाम नां करो ।
बेशक हम्मारी जुबाने कटवा डालो ! हम्मरी जान ले लो, हमे मरवा दो लेकिन एैसी अशलील किताब को गुरू की वाणी कहके हमारे लिये अपना सारा वँश दान कर देने वाले हमारे दशम गुरू को बदनाम नां करो ।
कल मैने भाई मनप्रीत सिँह कानपुरी की गुरद्वारा बँगला साहिब से कीर्तन करते जो भड़काऊ स्पीच उन्हो ने दी सुन कल बहुत अफसोस हुआ । एक गुरूवाणी का कीर्तन करने वाला गायक , क्या भोले भाले सिक्खो की भावनाओ को भड़का कर इस कदर नफरत फैला सकता है कि वह उनको उकसाता हुआ यह कहे कि , " अगर आपने किर्पाण पहनी है तो जैकारा छोड़ कर यह प्रण करीए कि जो व्यक्ति दसम ग्रँथ नाम की किताब को गुरू गोबिँद सिँघ साहिब की वाणी नही मानता उसकी जुबान काट लो ! या उसकी जान ले लो, जा अपनी जान दे दो। आज धार्मिक स्टेज भी राजनीति के अखाड़े बन चुके है, लेकिन एैसे उकसाने वाले ब्यान गैर कानूनी और मानव धर्म का खुला उलँधन हैं ।कई दिनो से भाई मनपी्त सिँध कानपुरी रागी, गुरदुआरा बँगला सहिब से एैसे भड़काऊ ब्यान दे कर भोले भाले सिक्खो को जुबान काट लेने और जान से मार देने की धमकीआ दे रहे है ।
कल को अगर एैसा कोई हादसा सिक्खो में हो जाता है तो मनपरीत सिँह रागी कानपुरी और मौजूदा गुरूदवारा कमेटी उस हादसे के लिये पूरी तरह से जिम्मेदार होगी ।क्या धार्मिक पर्चारक या कोई धर्म एक दूसरे की जुबान काट देने के लिए उकसाता है ?
मै ही कथित दसम ग्ँथ को गुरू गोबिँद सिँह साहिब की रचना नही मानता ।मेरे जैसे हजारो ,लाखों लोग इस किताब को गुरू साहिब की रचना नही मानते । काट दो हमारी सभ की जुबान मरवा दो हम सभको , लेकिन एैसी अशलील रचनाओ को "दसम वाणी" कह के हमारे सरबँस दानी गुरू को बदनाम नां करो ।पूरे समाज को नफरत की आग में झोंक कर एक दूसरे का दुशमन मत बनाओ !
अगर भाई मनप्रीत सिँध कानपुरी , इन रचनाओ को गुरू लिखित मानते हैं तो अपने गुरू की इन रचनाओं को सँगत से क्यो छुपाते हैं ,? अगर आप दसम गुरू के सच्चे सिक्ख है, तो सिक्खों को भड़काने की बजाय नीचे दी हुई इसी किताब की एैसी रचनायो का कीर्तन करके दिखाये । यदि यह गुरूवाणी है तो सँगत में इसका कीर्तन करने मे परहेज क्यों ? क्या आपके गुरू ने इन्हे सिक्खों से छुपा कर रखने के लिये लिखा था ?
सो नर पियत न भाँग रहे कोडी महि जिह चित।
सो नर अमल न पियै दान भै नहि जा को हित ।
मयानो अधिक कहायि काक की उपमा पावहि।
अँत सवान जयो मरै दीन दुनिया पछुतावहि।
कथित दसम गर्ँथ पन्ना ऩ ११६१
अर्थ ; जो व्यक्ति भांग नही पीता उसकी मति कौड़ी की नही होती । जो व्यक्ति नशा नहीं करता, उसका दिआ हुआ दान भी व्यर्थ जाता है ।अपने आप को बहुत अधिक स्याना समझता है, लेकिन कऊआ कहलाता है । अँत समय वह कुत्ते की मौत मरता है ,और अपनी दीन, दुनीयां गवा बैठता है।
चँचलान को चित छिन इक मै लेही ।
भाँति भांति भामनिन भोग भावत मन देही ।२३।
भजहि बाम कैफीयै केल जुग जाम मचावहि।
हरिणा जिमि उछलहि, नारि नागरिन रिझावही।
सैफी चड़तहि कांपि घरणि ऊपर परै ।
हो बीरज खलत वै जाहि कहा जड़ रति करै ।२४।
कथित दसम गँर्थ पन्ना ११६१
अर्थ : (जो व्यक्ति नशा करते है वह कामुक स्त्रीयों का चित्त एक पल में ही जीत लेते हैं । वह भाँति भाँत विधीयों से उन स्रीयो को भोग कर शारीरिक सुख प्राप्त करते हैं । जो मनुष्य नशा नही करते उन्हे हमेशां यमराज डराता है ,भाव वह मौत से डरते है । जो व्यक्ति नशा करता है ,वह हिरण की तरह उछल उछल कर नागिन जैसी भाव कामुक स्त्रीयों को रिझाता है । सूफी (नशा न करने वाला) व्यकति स्त्री पर चड़ते ही ,भुमि पर आ जाता है । और उसरा वीर्य फौरन निकल जाता है ,एैसा व्यक्ति खाक सम्भोग करेगा ।
मनप्रीत सिध कानपुरी जी बेशक हम्मारी जुबाने कटवा डालो ! हम्मरी जान ले लो, हमे मरवा दो लेकिन उस रब्ब का वासता है कि एैसी अति की अशलील और मनुष्य को चरित्र हीन बनाने वाली किताब को गुरू की वाणी कहके अपना सारा वँश दान कर देने वाले हमारे दशम गुरू को बदनाम नां करो ।
इन्दरजीत सिँघ, कानपुर
ਇੰਦਰਜੀਤ ਸਿੰਘ ਕਾਨਪੁਰ
वँश दान कर देने वाले हमारे दशम गुरू को बदनाम नां करो ।
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